बुधवार, अक्तूबर 19, 2011
रविवार, अक्तूबर 16, 2011
आदि का घोड़ा
भीगे बाल मेरे....
भीगे बाल मेरे....
छोटा डाउन
छोटा डाउन
आदि की नई 'टोपी'
पापा का स्टाइल
देहरादून टूर
श्री के साथ आदि
श्री के साथ आदि
मेरा फेवरिट झूला
झूले पर आदि
रेलवे स्टेशन पर आदि
छठ घाट का नजारा
ये है मेरा स्टाइल....
दिल्ली टू दरभंगा
शनिवार, अक्तूबर 15, 2011
नींद की आगोश में आदि
मसूरी का टूर
नाना-नानी के साथ आदि
मसूरी का टूर
रविवार, अक्तूबर 02, 2011
बदमाशी की तरकीबें
हेलो दोस्तो....आप सोच रहे होंगे कि मैं दुआ-सलाम करने के बाद अचानक कहां गायब हो गया। दरअसल बात यह है कि बीच में मेरी तबियत जरा बिगड़ गई। बुखार ऐसी लगी कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा थी।
मेरी सेहत बिगड़ने से मुझसे ज्यादा परेशान तो मम्मी-पापा हो गए। वे मुझे डॉक्टर आंटी के पास दिखाने ले गए। पहले दिन तो आंटी ने सिर्फ मेरा बुखार जांच कर दवा दी। फिर उन्होंने मुझे तीन दिन बाद आने को कहा। ये तीन दिन कैसे बीते...पूछिए मत।
दिन में तीन-चार बार दवा खाना और उसपर से वह भी कड़वी....। मैंने तो पहले डोज में ही सरेंडर कर दिया, पर मम्मी मानने वाली तो थी नहीं। पहले प्यार से और फिर डांट-डपटकर मुझे दवा पिलानी शुरू की। आपलोगों के प्यार-दुलार और दवा खूब रंग लाई और मेरी सेहत में काफी सुधार आया।
तीसरे दिन जब मैं डॉक्टर आंटी के पास पहुंचा तो मेरी तबियत पहले के मुकाबले ठीक थी, पर पूरी तरह सुधरी नहीं थी। पर आज के दिन कड़ा इम्तिहान होना था। आंटी ने मेरा ब्लड टेस्ट लेने का फैसला किया। एक बड़ी सुई मेरी बांह में चुभो दी गई। थोड़ा सा दर्द हुआ और फिर मैं मम्मी की गोद में दुबक गया।
वैसे अब मेरी दवा खत्म हो गई है और मैं धीरे-धीरे पहले की तरह बदमाशी करने में जुट गया हूं।
सबसे पहले मैंने पापा की लाई हुई किताब फाड़ी। मेरी बदमाशी की रूटीन में यूं तो कई शरारतें शामिल है, पर उनमें कुछ खास हैः-
मसलन मोबाइल को जोर से पटकना/फेंकना और टीवी के रिमोट को फेंकना.....। घर के सामान को तीसरे फ्लोर से नीचे फेंकना। इस फेंकी हुई चीज में कुछ भी हो सकती है (इससे मुझे कोई मतलब नहीं)...पापा की पीठ पर बैठकर हुड़दंग मचाना...।
तो दोस्तों...ये है मेरी बदमाशी के कुछ खास नमूने। इसलिए पापा मुझे 'बदमाश' भी बुलाने लगे हैं। यदि आपको बदमाशी की कोई नई तरकीबें मालूम हो तो मुझे जरूर बताइएगा...। आपकी सलाह का मुझे बेसब्री से इंतजार है।
मेरी सेहत बिगड़ने से मुझसे ज्यादा परेशान तो मम्मी-पापा हो गए। वे मुझे डॉक्टर आंटी के पास दिखाने ले गए। पहले दिन तो आंटी ने सिर्फ मेरा बुखार जांच कर दवा दी। फिर उन्होंने मुझे तीन दिन बाद आने को कहा। ये तीन दिन कैसे बीते...पूछिए मत।
दिन में तीन-चार बार दवा खाना और उसपर से वह भी कड़वी....। मैंने तो पहले डोज में ही सरेंडर कर दिया, पर मम्मी मानने वाली तो थी नहीं। पहले प्यार से और फिर डांट-डपटकर मुझे दवा पिलानी शुरू की। आपलोगों के प्यार-दुलार और दवा खूब रंग लाई और मेरी सेहत में काफी सुधार आया।
तीसरे दिन जब मैं डॉक्टर आंटी के पास पहुंचा तो मेरी तबियत पहले के मुकाबले ठीक थी, पर पूरी तरह सुधरी नहीं थी। पर आज के दिन कड़ा इम्तिहान होना था। आंटी ने मेरा ब्लड टेस्ट लेने का फैसला किया। एक बड़ी सुई मेरी बांह में चुभो दी गई। थोड़ा सा दर्द हुआ और फिर मैं मम्मी की गोद में दुबक गया।
वैसे अब मेरी दवा खत्म हो गई है और मैं धीरे-धीरे पहले की तरह बदमाशी करने में जुट गया हूं।
सबसे पहले मैंने पापा की लाई हुई किताब फाड़ी। मेरी बदमाशी की रूटीन में यूं तो कई शरारतें शामिल है, पर उनमें कुछ खास हैः-
मसलन मोबाइल को जोर से पटकना/फेंकना और टीवी के रिमोट को फेंकना.....। घर के सामान को तीसरे फ्लोर से नीचे फेंकना। इस फेंकी हुई चीज में कुछ भी हो सकती है (इससे मुझे कोई मतलब नहीं)...पापा की पीठ पर बैठकर हुड़दंग मचाना...।
तो दोस्तों...ये है मेरी बदमाशी के कुछ खास नमूने। इसलिए पापा मुझे 'बदमाश' भी बुलाने लगे हैं। यदि आपको बदमाशी की कोई नई तरकीबें मालूम हो तो मुझे जरूर बताइएगा...। आपकी सलाह का मुझे बेसब्री से इंतजार है।
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