शुक्रवार, मई 11, 2012

बच्चे मन के सच्चे

बच्चे मन के सच्चे
सारी जग के आंख के तारे
ये वो नन्हे फूल हैं जो
भगवान को लगते प्यारे
बच्चे मन के सच्चे...
 
खुद रूठे, खुद मन जाए, फिर हमजोली बन जाए
झगड़ा जिसके साथ करें, अगले ही पल फिर बात करें
इनकी किसी से बैर नहीं, इनके लिए कोई गैर नहीं
इनका भोलापन मिलता है, सबको बांह पसारे
बच्चे मन के सच्चे...

इंसान जब तक बच्चा है, तब तक समझ का कच्चा है
ज्यों-ज्यों उसकी उमर बढ़े, मन पर झूठ का मैल चढ़े
क्रोध बढ़े, नफरत घेरे, लालच की आदत घेरे
बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुज़ारे
बच्चे मन के सच्चे...

तन कोमल मन सुंदर, हैं बच्चे बड़ों से बेहतर
इनमें छूत और छात नहीं, झूठी जात और पात नहीं
भाषा की तकरार नहीं, मजहब की दीवार नहीं
इनकी नजरों में एक हैं, मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे
बच्चे मन के सच्चे...

यह खूबसूरत गीत फिल्म 'दो कलियां' की है। मशहूर संगीतकार रवि ने इसे मधुर धुनों से सजाया। लता की आवाज और साहिर लुधियानवी के बोल ने इसमें मधुर रस घोल दिए।

बुधवार, मई 09, 2012

चंदामामा दूर के...

चंदामामा दूर के, पुए पकाएं बूर के
आप खाएं थाली में, मुन्ने को दें प्याली में
प्याली गई टूट मुन्ना गया रूठ

लाएंगे नई प्यालियां, बजा-बजा के तालियां
मुन्ने को मनाएंगे हम दूध मलाई खाएंगे,
चंदामामा दूर के, पुए पकाएं बूर के....

उड़नखटोले बैठ के मुन्ना चंदा के घर जाएगा
तारों के संग आंख मिचौली खेल के दिल बहलाएगा

खेल कूद से जब मेरे मुन्ने का दिल भर जाएगा
ठुमक ठुमक मेरा मुन्ना वापस घर को आएगा,
चंदामामा दूर के, पुए पकाएं बूर के.....

.....बात दरअसल यह है कि पापा को 'आदि' की बहुत याद आ रही है। अभी वह अपने नाना-नानी के यहां धमाचौकड़ी मचा रहा है। बदमाश इतना हो गया है कि पूछिए ही मत...। फोन पर बात करने को कहूं तो बोलेगा, पापा मुझे छोड़कर क्यों गए..मैं नहीं बात करूंगा। यदि उसने 'नहीं' बोल दिया तो बार-बार 'नहीं...' बोलते रहेगा। तो सोचा क्यूं न यही गाने गुनगुनाकर उसे अपने पास होने का अहसास करूं।

शुक्रवार, मई 04, 2012

किस सोच में डूबा है आदि

आखिर आदि न जाने किस सोच में डूबा है। लहराते बाल और नई ड्रेस आदि पर खूब फब रही है।

फोटो स्टूडियो में आदि


आदि का मुंडन होने वाला था। इसलिए पापा-मम्मी उसे स्टूडियो में फोटो खिंचवाने ले गए। आदि जब बड़ा होगा यह जरूर देखेगा कि बचपन में उसके बाल कितने बड़े और खूबसूरत थे।

नई पोशाक में आदि

आदि पर यह ड्रेस पर खूब फब रही है। मम्मी ने बड़े प्यार से टोपी और ड्रेस खरीदी तो फिर पहनने में भला देरी क्यों..।

यह आदि का स्टाइल है...

यह आदि का स्टाइल है। ऐसा चश्मा पहनने का भला कौन साहस कर सकता है।

भाई ये अपुन का स्टाइल है...

आदि को चश्मा पहनने का बेहद शौक है, पर वह उसे उल्टा पहनता है। आखिर क्यों न हो भाई ये अपुन का स्टाइल है।

गांव का मंदिर

यही है गांव के हनुमानजी का मंदिर जहां आदि पूजा करने गया था।

आदि का मुंडन

बाल कटवाने के बाद आदि सबसे पहले गांव के हनुमान मंदिर में पूजा करने गया।

आदि का मुंडन

बाल कटवाने के बाद आदि सबसे पहले गांव के हनुमान मंदिर में पूजा करने गया।

आदि का मुंडन

बाल कटवाने के बाद आदि सबसे पहले गांव के हनुमान मंदिर में पूजा करने गया।

आदि का मुंडन

आदि का मुंडन 29 मार्च को हुआ। नाई से बाल कटवाता आदि।

आदि का मुंडन

आदि का मुंडन 29 मार्च को हुआ। नाई से बाल कटवाता आदि।

बुधवार, मई 02, 2012

कहां गुम हो गया है आदि....

पापा से उनके दोस्तों ने शिकायत की है कि आदित्य नयन के ब्लॉग पर कुछ अपडेट क्यूं नहीं हो रहा है? भला पापा क्या जवाब देते....वे चुप हो गए। पर उनकी चुप्पी मुझे बर्दाश्त नहीं हुई। तो आइए मैं राज खोलता हैं उनकी चुप्पी का।

दरअसल मेरी 'छोटी मम्मी' (मौषी) की शादी 18 अप्रैल को थी। इससे पहले मेरा मुंडन 29 मार्च को था। इसलिए कुछ ऐसा पापा और मम्मी ने प्रोग्राम बनाया कि दोनों फंक्‍शन मैं एक साथ एटेंड करूं।

मेरा मुंडन था, उसमें मेरा रहना बिल्कुल जायज था। और मैं अपनी 'छोटी मम्मी' का दुलारा जो ठहरा, तो भला उनकी शादी में मैं कैसे नहीं धूम मचाता। इसलिए मैं मम्मी-पापा के साथ 26 फरवरी को ही नोएडा से घर के लिए रवाना हो गया।

हमलोगों ने नई दिल्ली से शाम 5.30 बजे पटना के लिए संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस ट्रेन ली। मेरे साथ मम्मी-पापा के अलावा देहरादून वाली फुआ भी थी। करीब 7.30 बजे सुबह हमलोग पटना पहुंचे।

पटना स्टेशन पर हमलोगों को रिसीव करने मेरे मामाजी आए हुए थे। पटना में मामाजी को कुछ काम था। इसलिए हमलोगों को घर पहुंचते-पहुंचते देर हो गई। पहले मैं अपने नाना के यहां झंझारपुर गया। पेट पूजा करने के बाद करीब रात 9 बजे हमलोग अपने घर यानी सिसौनी पहुंचे।

मुंडन के दिन नाई के हाथ में कैंची देखकर थोड़ी देर के लिए तो मैं डर गया। फिर साथ में बाबा, दाईमां, मम्मी और अन्य लोगों को देखकर डर भी छूमंतर हो गया।

खैर यदि मैं अभी तक की पूरी कहानी सुनाने लगूं तो पापा का ऑफिस का काम कौन करेगा। इसलिए शॉर्टकट में बताता हूं।

29 को मुंडन होने के बाद उसी दिन शाम में घर पर भोज का आयोजन किया गया। भोज में खूब रसगुल्ले और लालमोहन बांटे गए।

कुछ दिन बाद बाबा-दादी के साथ रहने के बाद मैं अपने नाना-नानी के यहां आ गया। इसी बीच बड़े बाबा के निधन की खबर मिली और मैं तुरंत मम्मी के साथ अपने गांव सिसौनी लौट आया।

सारा काम खत्म होने के बाद मैं फिर अपने नाना के यहां 'छोटी मम्मी' की शादी एटेंड करने चला गया। शादी में मैंने जीभरकर धमाचौकड़ी और बदमाशी की।

मसलन धूप में ट्रैक्टर पर बैठे रहना, बोलेरो 'ड्राइव' करना, पोखरा जाना और न जाने कई सारी ऐसी चीजें जो पापा को भी नहीं मालूम। इन बदमाशियों का असर मुझ पर भी दिखा और मैं मलेरिया बुखार की जद में आ गया।

हालांकि अब मैं धीरे-धीरे ठीक हो रहा हूं। डॉक्टर ने कड़वी दवा दी है जो असर दिखाने लगी है। शायद हफ्ते-दो-हफ्ते में मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊं। इसके बाद मेरा फिर नोएडा आने की योजना है।

अब पापा मेरा स्कूल में एडमिशन कराने की सोच रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि मेरी बदमाशी पर अंकुश लगने वाली है। खैर चलो देखते हैं पापा अपने लाडले की बदमाशी कैसे कम करते हैं। पर कोई बात नहीं मेरे लिए जो सबसे अच्छा होगा, वही पापा करेंगे।