पापा से उनके दोस्तों ने शिकायत की है कि आदित्य नयन के ब्लॉग पर कुछ अपडेट क्यूं नहीं हो रहा है? भला पापा क्या जवाब देते....वे चुप हो गए। पर उनकी चुप्पी मुझे बर्दाश्त नहीं हुई। तो आइए मैं राज खोलता हैं उनकी चुप्पी का।
दरअसल मेरी 'छोटी मम्मी' (मौषी) की शादी 18 अप्रैल को थी। इससे पहले मेरा मुंडन 29 मार्च को था। इसलिए कुछ ऐसा पापा और मम्मी ने प्रोग्राम बनाया कि दोनों फंक्शन मैं एक साथ एटेंड करूं।
मेरा मुंडन था, उसमें मेरा रहना बिल्कुल जायज था। और मैं अपनी 'छोटी मम्मी' का दुलारा जो ठहरा, तो भला उनकी शादी में मैं कैसे नहीं धूम मचाता। इसलिए मैं मम्मी-पापा के साथ 26 फरवरी को ही नोएडा से घर के लिए रवाना हो गया।
हमलोगों ने नई दिल्ली से शाम 5.30 बजे पटना के लिए संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस ट्रेन ली। मेरे साथ मम्मी-पापा के अलावा देहरादून वाली फुआ भी थी। करीब 7.30 बजे सुबह हमलोग पटना पहुंचे।
पटना स्टेशन पर हमलोगों को रिसीव करने मेरे मामाजी आए हुए थे। पटना में मामाजी को कुछ काम था। इसलिए हमलोगों को घर पहुंचते-पहुंचते देर हो गई। पहले मैं अपने नाना के यहां झंझारपुर गया। पेट पूजा करने के बाद करीब रात 9 बजे हमलोग अपने घर यानी सिसौनी पहुंचे।
मुंडन के दिन नाई के हाथ में कैंची देखकर थोड़ी देर के लिए तो मैं डर गया। फिर साथ में बाबा, दाईमां, मम्मी और अन्य लोगों को देखकर डर भी छूमंतर हो गया।
खैर यदि मैं अभी तक की पूरी कहानी सुनाने लगूं तो पापा का ऑफिस का काम कौन करेगा। इसलिए शॉर्टकट में बताता हूं।
29 को मुंडन होने के बाद उसी दिन शाम में घर पर भोज का आयोजन किया गया। भोज में खूब रसगुल्ले और लालमोहन बांटे गए।
कुछ दिन बाद बाबा-दादी के साथ रहने के बाद मैं अपने नाना-नानी के यहां आ गया। इसी बीच बड़े बाबा के निधन की खबर मिली और मैं तुरंत मम्मी के साथ अपने गांव सिसौनी लौट आया।
सारा काम खत्म होने के बाद मैं फिर अपने नाना के यहां 'छोटी मम्मी' की शादी एटेंड करने चला गया। शादी में मैंने जीभरकर धमाचौकड़ी और बदमाशी की।
मसलन धूप में ट्रैक्टर पर बैठे रहना, बोलेरो 'ड्राइव' करना, पोखरा जाना और न जाने कई सारी ऐसी चीजें जो पापा को भी नहीं मालूम। इन बदमाशियों का असर मुझ पर भी दिखा और मैं मलेरिया बुखार की जद में आ गया।
हालांकि अब मैं धीरे-धीरे ठीक हो रहा हूं। डॉक्टर ने कड़वी दवा दी है जो असर दिखाने लगी है। शायद हफ्ते-दो-हफ्ते में मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊं। इसके बाद मेरा फिर नोएडा आने की योजना है।
अब पापा मेरा स्कूल में एडमिशन कराने की सोच रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि मेरी बदमाशी पर अंकुश लगने वाली है। खैर चलो देखते हैं पापा अपने लाडले की बदमाशी कैसे कम करते हैं। पर कोई बात नहीं मेरे लिए जो सबसे अच्छा होगा, वही पापा करेंगे।
दरअसल मेरी 'छोटी मम्मी' (मौषी) की शादी 18 अप्रैल को थी। इससे पहले मेरा मुंडन 29 मार्च को था। इसलिए कुछ ऐसा पापा और मम्मी ने प्रोग्राम बनाया कि दोनों फंक्शन मैं एक साथ एटेंड करूं।
मेरा मुंडन था, उसमें मेरा रहना बिल्कुल जायज था। और मैं अपनी 'छोटी मम्मी' का दुलारा जो ठहरा, तो भला उनकी शादी में मैं कैसे नहीं धूम मचाता। इसलिए मैं मम्मी-पापा के साथ 26 फरवरी को ही नोएडा से घर के लिए रवाना हो गया।
हमलोगों ने नई दिल्ली से शाम 5.30 बजे पटना के लिए संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस ट्रेन ली। मेरे साथ मम्मी-पापा के अलावा देहरादून वाली फुआ भी थी। करीब 7.30 बजे सुबह हमलोग पटना पहुंचे।
पटना स्टेशन पर हमलोगों को रिसीव करने मेरे मामाजी आए हुए थे। पटना में मामाजी को कुछ काम था। इसलिए हमलोगों को घर पहुंचते-पहुंचते देर हो गई। पहले मैं अपने नाना के यहां झंझारपुर गया। पेट पूजा करने के बाद करीब रात 9 बजे हमलोग अपने घर यानी सिसौनी पहुंचे।
मुंडन के दिन नाई के हाथ में कैंची देखकर थोड़ी देर के लिए तो मैं डर गया। फिर साथ में बाबा, दाईमां, मम्मी और अन्य लोगों को देखकर डर भी छूमंतर हो गया।
खैर यदि मैं अभी तक की पूरी कहानी सुनाने लगूं तो पापा का ऑफिस का काम कौन करेगा। इसलिए शॉर्टकट में बताता हूं।
29 को मुंडन होने के बाद उसी दिन शाम में घर पर भोज का आयोजन किया गया। भोज में खूब रसगुल्ले और लालमोहन बांटे गए।
कुछ दिन बाद बाबा-दादी के साथ रहने के बाद मैं अपने नाना-नानी के यहां आ गया। इसी बीच बड़े बाबा के निधन की खबर मिली और मैं तुरंत मम्मी के साथ अपने गांव सिसौनी लौट आया।
सारा काम खत्म होने के बाद मैं फिर अपने नाना के यहां 'छोटी मम्मी' की शादी एटेंड करने चला गया। शादी में मैंने जीभरकर धमाचौकड़ी और बदमाशी की।
मसलन धूप में ट्रैक्टर पर बैठे रहना, बोलेरो 'ड्राइव' करना, पोखरा जाना और न जाने कई सारी ऐसी चीजें जो पापा को भी नहीं मालूम। इन बदमाशियों का असर मुझ पर भी दिखा और मैं मलेरिया बुखार की जद में आ गया।
हालांकि अब मैं धीरे-धीरे ठीक हो रहा हूं। डॉक्टर ने कड़वी दवा दी है जो असर दिखाने लगी है। शायद हफ्ते-दो-हफ्ते में मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊं। इसके बाद मेरा फिर नोएडा आने की योजना है।
अब पापा मेरा स्कूल में एडमिशन कराने की सोच रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि मेरी बदमाशी पर अंकुश लगने वाली है। खैर चलो देखते हैं पापा अपने लाडले की बदमाशी कैसे कम करते हैं। पर कोई बात नहीं मेरे लिए जो सबसे अच्छा होगा, वही पापा करेंगे।
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