बुधवार, मई 09, 2012

चंदामामा दूर के...

चंदामामा दूर के, पुए पकाएं बूर के
आप खाएं थाली में, मुन्ने को दें प्याली में
प्याली गई टूट मुन्ना गया रूठ

लाएंगे नई प्यालियां, बजा-बजा के तालियां
मुन्ने को मनाएंगे हम दूध मलाई खाएंगे,
चंदामामा दूर के, पुए पकाएं बूर के....

उड़नखटोले बैठ के मुन्ना चंदा के घर जाएगा
तारों के संग आंख मिचौली खेल के दिल बहलाएगा

खेल कूद से जब मेरे मुन्ने का दिल भर जाएगा
ठुमक ठुमक मेरा मुन्ना वापस घर को आएगा,
चंदामामा दूर के, पुए पकाएं बूर के.....

.....बात दरअसल यह है कि पापा को 'आदि' की बहुत याद आ रही है। अभी वह अपने नाना-नानी के यहां धमाचौकड़ी मचा रहा है। बदमाश इतना हो गया है कि पूछिए ही मत...। फोन पर बात करने को कहूं तो बोलेगा, पापा मुझे छोड़कर क्यों गए..मैं नहीं बात करूंगा। यदि उसने 'नहीं' बोल दिया तो बार-बार 'नहीं...' बोलते रहेगा। तो सोचा क्यूं न यही गाने गुनगुनाकर उसे अपने पास होने का अहसास करूं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें